देश में बाघों की कम होती संख्या से चितिंत सरकार ने वर्ष 1973 में तत्कालीन बिहार और वर्तमान झारखंड के पलामू नेशनल पार्क, बेतला में पलामू टाइगर्स प्रोजेक्ट की शुरुआत की थी. हर वर्ष पलामू टाइगर प्रोजेक्ट पर सरकार करोड़ों रुपये खर्च करती है, पर योजना के चार दशक बाद हालत यह हो गए हैं कि बाघ बेतला के पार्क में अब ढूंढ़ने पर भी नहीं दिखते. साल दर साल बाघों की संख्या क्यों कम हो गई. इसका जवाब वन विभाग के पास भी नहीं है.

मायूस लौटते पर्यटक

आखिर कहां चले गये बेतला के बाघ!

पलामू टाउगर प्रोजेक्ट क्षेत्र की स्थिति बेहद खराब है. वर्ष 2012 के सरकारी आंकड़ों में कोर और बफर एरिया में बाघ नहीं बचें हैं. हर वर्ष 20 करोड़ से ज्यादा राशि खर्च होती है. पर बेतला के बाघ कहां चले गये इससे विभाग अंजान है. अब तो हालात यह हो गये कि बाघ देखने की हसरत लिये पलामू पहुंचनेवाले पर्यटक और पर्यावरणविद् दोनों यहां की स्थिति देख हताश हो जाते हैं. बेतला पार्क घूम कर लौट रही पर्यटक शालिनी ने कहा कि छोटे मोटे कई जानवर दिखे पर बाघ कहीं नजर नहीं आए. ऐसे में यहां आने का उद्देश्य ही विफल हो गया. अन्य कई पर्यटकों ने भी बाघ नहीं दिखने पर मायूसी जाहिर की.

123 बाघ बेतला से गायब

पर्यावरणविद् डॉ(प्रो.) नीतीश प्रियदर्शी कहते हैं कि बाघ जंगल की कमी, भोजन की कमी, बीमारी, शिकार आदि के कारण लगातार कम हो रहे हैं.  विशेषज्ञों की मानें तो 1973 से अब तक 123 बाघ बेतला से गायब हों तो इसकी वजह भी साफ है. बाघों को न आसमान निगल गया, न जमीन खा गयी. बल्कि बाघ तो हमारी जंग लगी व्यवस्था और सरकारी स्तर पर उदासीनता का शिकार हो गए.

हर साल सैंपल, सीसीटीवी फुटेज के नाम पर बड़ी बड़ी बातें होती रही.

अब भी इनके दावे अलग

बाघ प्रेमी, विशेषज्ञ और पर्यावरणविद् भले ही बाघों की संख्या को लेकर चिंतित हों पर राज्य का वन विभाग तो चिंता को बेवजह करार देता है. वाइल्ड लाइफ, झारखंड के पीसीसीएफ प्रभात कुमार बाघों की सेंसस की रिपोर्ट पर भी सवाल उठाते हैं. उनका दावा है कि बाघों की संख्या कम नहीं हुई है. चूंकि सेंसस रिपोर्ट के लिए जंगल के महमज एक तिहाई क्षेत्र का अध्ययन किया गया है यहां से भी केवल 29 मल सैंपल उठाए गए इसीलिए रिपोर्ट में कम बाघ दिखे. बाघ कम नहीं हुए हैं, इसे प्रमाणित करने के लिए बाघों के मल के नमूने इकट्ठे किए जा रहे हैं.

बहरहाल, बेतला के जंगलों में लगातार बाघों की संख्या कम होती जा रही है तो दूसरी ओर वन विभाग के पदाधिकारी अपने ही आंकड़ों पर सवाल खड़ा कर अब भी दावा करते हैं कि बेतला में बाघों की अच्छी खासी संख्या है. ऐसे में बाघों के सेंसस रिपोर्ट पर राज्य और देश की जनता भरोसा करे या फिर उन अधिकारियों के बयानों पर जिनके संरक्षण में लगातार बाघ कम होते गये और दावे बड़े.
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